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गीता प्रेस, गोरखपुर >> आशा की नयी किरणें

आशा की नयी किरणें

रामचरण महेन्द्र

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :214
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 1019
आईएसबीएन :81-293-0208-x

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प्रस्तुत है आशा की नयी किरणें...

व्यस्त रहा कीजिये


विन्स्टन चर्चिल दिन-रातके चौबीस घंटोंमें १८ घंटे परिश्रम करनेके आदी रहे हैं। उनसे जब पूछा गया कि क्या चिन्ताने कभी उनपर आक्रमण किया है, तो उन्होंने उत्तर दिया 'मेरे पास इतना काम है कि चिन्ता करनेके लिये समय ही नहीं मिल पाता।' चिन्ता फालतू आलसी निष्क्रीय मनका एक विकार है। कमजोर तबीयतके व्यक्ति जब खाली होते हैं, तो बजाय उन्नत पहलू देखनेके, वे अपने विरोध, भय, दुःख, क्लेशकी बातें सोचा करते हैं। जिनके पास पर्याप्त कार्य है, उन्हें चिन्ता-जैसे विलासके लिये कहाँ अवकाश है?

प्रसिद्ध वैज्ञानिक लुई पाश्चरने कहा है कि 'शान्ति दो ही स्थानोंपर रह सकती है, पुस्तकालयमें अथवा वैज्ञानिक प्रयोगशालामें।' इन दोनों स्थानोंमें क्यों शान्तिकी कल्पना की गयी है? कारण, इन दोनोंमें कार्य करनेवाले व्यक्ति अपनी पुस्तकों तथा अनुसंधानोंमें इतने निमग्न रहते है कि उनके पास चिन्ता करनेके लिये अवकाश ही नहीं रहता। अनुसंधानमें रत व्यक्तियोंको स्नायविक दौरे नहीं पड़ते। चिन्ता-जैसी व्यर्थ सारहीन चीजके लिये उनके पास समय नहीं बचता।

यह बात मनोविज्ञानकी दृष्टिसे ठीक है। चाहे किसीका मस्तिष्क कितना ही तेज, बुद्धि कितनी ही कुशाग्र क्यों न हो, दिमाग एक समयमें एक ही बातपर केन्द्रित हो सकता है। जब आप अपने कार्यमें सूईकी तरह गड़ जाते है, तो फिर मनकी शक्तियोंको चिन्ताके विषयोंपर सोचने-विचारनेका अवसर ही प्राप्त नहीं होता। काममें तन्मय हो जाना, रुचि और उत्साहसे उसे पूर्ण करनेका प्रयत्न करना चिन्तासे बचनेका श्रेष्ठ उपाय है।

जौन कूपर पौब्स अपनी पुस्तक 'अप्रियको कैसे भूलें?' में लिखते हैं-'जब मनुष्यका मन किसी रुचि-अनुकूल कार्यमें तन्मयतासे लग जाता है, तो उसे एक पकारका आराम देनेवाला संरक्षण, एक आन्तरिक शान्ति, एक आनन्ददायक विस्मृतिका अनुभव होता है। उसके चिन्तावाले तनावका भी बन्धन टूट जाता है।'

ओसा जौन्सन कहा करते थे, 'मुझे संसारकी इस कर्मस्थलीमें कार्यमें निमग्र हो जाना चाहिये, अन्यथा मैं निराशा तथा चिन्तामें घुल जाऊँगा।'

बात ठीक भी है। यदि हम-आप किसी कार्यमें अपनी सम्पूर्ण शक्तियोंको व्यस्त न रखें, यदि हम बैठकर गड़े मुर्दे उखाड़ने लगें, दुःखद प्रसंगोंका स्मरण कर रोते रहें, तो हमारा जीना ही दुष्कर हो जायेगा।

बर्नाड शा ने सही कहा है, 'दुःखी रहनेका सीधा मार्ग यह है कि आप इस चिन्तामें पड़ जायें कि मैं प्रसन्न हूँ या दुःखी?' अतः अहितकर चिन्तनके लिये मनको ढीला छोड़ देना ही मूर्खता है। आइये, फालतू बैठनेके स्थानपर किसी कार्यमें व्यस्त हो जायँ-अपना कमरा ही साफ कर लें; रूमाल ही धो डालें; बाजारसे सब्जी ले आयें या अपने जूतेपर पालिश ही कर लें। कार्य चाहिये। जहाँ आप किसी कार्यमें लिप्त हुए कि चिन्ता भागी। यह सबसे सस्ती दवाई है जिससे चिन्ताकी पुरानी शत्रुता है। चिन्तासे बचनेके लिये कार्य-पढ़ाई-लिखाई, घरेलू काम, बच्चोंसे खेल-कूद, गायन या बागवानीमें लगे रहें।

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    अनुक्रम

  1. अपने-आपको हीन समझना एक भयंकर भूल
  2. दुर्बलता एक पाप है
  3. आप और आपका संसार
  4. अपने वास्तविक स्वरूपको समझिये
  5. तुम अकेले हो, पर शक्तिहीन नहीं!
  6. कथनी और करनी?
  7. शक्तिका हास क्यों होता है?
  8. उन्नतिमें बाधक कौन?
  9. अभावोंकी अद्भुत प्रतिक्रिया
  10. इसका क्या कारण है?
  11. अभावोंको चुनौती दीजिये
  12. आपके अभाव और अधूरापन
  13. आपकी संचित शक्तियां
  14. शक्तियोंका दुरुपयोग मत कीजिये
  15. महानताके बीज
  16. पुरुषार्थ कीजिये !
  17. आलस्य न करना ही अमृत पद है
  18. विषम परिस्थितियोंमें भी आगे बढ़िये
  19. प्रतिकूलतासे घबराइये नहीं !
  20. दूसरों का सहारा एक मृगतृष्णा
  21. क्या आत्मबलकी वृद्धि सम्मव है?
  22. मनकी दुर्बलता-कारण और निवारण
  23. गुप्त शक्तियोंको विकसित करनेके साधन
  24. हमें क्या इष्ट है ?
  25. बुद्धिका यथार्थ स्वरूप
  26. चित्तकी शाखा-प्रशाखाएँ
  27. पतञ्जलिके अनुसार चित्तवृत्तियाँ
  28. स्वाध्यायमें सहायक हमारी ग्राहक-शक्ति
  29. आपकी अद्भुत स्मरणशक्ति
  30. लक्ष्मीजी आती हैं
  31. लक्ष्मीजी कहां रहती हैं
  32. इन्द्रकृतं श्रीमहालक्ष्मष्टकं स्तोत्रम्
  33. लक्ष्मीजी कहां नहीं रहतीं
  34. लक्ष्मी के दुरुपयोग में दोष
  35. समृद्धि के पथपर
  36. आर्थिक सफलता के मानसिक संकेत
  37. 'किंतु' और 'परंतु'
  38. हिचकिचाहट
  39. निर्णय-शक्तिकी वृद्धिके उपाय
  40. आपके वशकी बात
  41. जीवन-पराग
  42. मध्य मार्ग ही श्रेष्ठतम
  43. सौन्दर्यकी शक्ति प्राप्त करें
  44. जीवनमें सौन्दर्यको प्रविष्ट कीजिये
  45. सफाई, सुव्यवस्था और सौन्दर्य
  46. आत्मग्लानि और उसे दूर करनेके उपाय
  47. जीवनकी कला
  48. जीवनमें रस लें
  49. बन्धनोंसे मुक्त समझें
  50. आवश्यक-अनावश्यकका भेद करना सीखें
  51. समृद्धि अथवा निर्धनताका मूल केन्द्र-हमारी आदतें!
  52. स्वभाव कैसे बदले?
  53. शक्तियोंको खोलनेका मार्ग
  54. बहम, शंका, संदेह
  55. संशय करनेवालेको सुख प्राप्त नहीं हो सकता
  56. मानव-जीवन कर्मक्षेत्र ही है
  57. सक्रिय जीवन व्यतीत कीजिये
  58. अक्षय यौवनका आनन्द लीजिये
  59. चलते रहो !
  60. व्यस्त रहा कीजिये
  61. छोटी-छोटी बातोंके लिये चिन्तित न रहें
  62. कल्पित भय व्यर्थ हैं
  63. अनिवारणीयसे संतुष्ट रहनेका प्रयत्न कीजिये
  64. मानसिक संतुलन धारण कीजिये
  65. दुर्भावना तथा सद्धावना
  66. मानसिक द्वन्द्वोंसे मुक्त रहिये
  67. प्रतिस्पर्धाकी भावनासे हानि
  68. जीवन की भूलें
  69. अपने-आपका स्वामी बनकर रहिये !
  70. ईश्वरीय शक्तिकी जड़ आपके अंदर है
  71. शक्तियोंका निरन्तर उपयोग कीजिये
  72. ग्रहण-शक्ति बढ़ाते चलिये
  73. शक्ति, सामर्थ्य और सफलता
  74. अमूल्य वचन

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